घर मे नही दाने, अम्मा चली भुनाने। कुछ ऐसा ही चरितार्थ कर रही है शिमला नगर निगम

घर मे नही दाने, अम्मा चली भुनाने। कुछ ऐसा ही चरितार्थ कर रही है शिमला नगर निगम। 

एक बहुत ही चौकाने वाली खबर जो सुनने में आई है वो ये है कि एक समय मुम्बई जैसी महानगरपालिका को "कर्ज देने वाली शिमला नगर निगम" फिर से इतना धनवान हो गयी है कि  वो शिमला शहर की खून पसीने की कमाई को टैक्स के नाम पर वसूल कर उस पैसे से "उपहार के तौर पर जिला प्रशासन लाहौल स्पीति को कूड़ा उठाने के डंपर दे रही है।"

भाजपा को याद न हो तो याद दिला दें कि 2016-17 में शिमला में कूड़ा उठाने का शुल्क 40 रुपये लिया जाता था जो आज भाजपानीत नगर निगम ने दुगुने से भी ज्यादा करके 97 रुपये कर दिया है।

जिस पानी का दाम पूर्व नगर निगम ने 250 रुपये प्रति महीना तय किया था वो आज हजारों व लाखों रूपये में लिया जा रहा है। उसके उपरांत पानी की आपूर्ति नियमित नही है।

भाजपा को याद न हो तो शहर के विधायक व सरकार में शहरी विकास मंत्री और साथ ही नगर निगम शिमला के सहयोगी सदस्य इसके गवाह है।

आज लोगो के घरों पर लगने वाले कर को लगातार बढ़ाया जा रहा है।

कोरोना काल मे लोगो के कामधंधे चौपट हो गए। परंतु शिमला शहर की जनता को रियायत देने की बजाए शहर के विधायक बने मंत्री व नगर निगम शिमला दाता बन गया है।

यकीन मानिए कुछ ही दिन बाद आपको पता चलेगा कि ये भी भाजपा का एक बड़ा गेम प्लान (भष्टाचार) था। जिसमे शिमला शहर की जनता के खून पसीने की कमाई को निगम ने सेवा-टैक्स व उनके घरों पर कर लगाकर वसूला और लूट लिया।

अब ऐसे शुरू होंगे शिमला नगर निगम के अच्छे दिन??

इसकी जाँच होनी चाहिए और जनता की गाढ़ी कमाई क्यों ऐसे लुटाई जा रही है इसकी जवाबदेही तय की जानी चाहिए और जो भी इसके लिए दोषी है उसके विरुद्ध कार्यवाही होना आवश्यक है।
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